मंगळवार, ७ जून, २०१६

ढूँढोगे अगर मुल्कों मुल्कों, मिलने के नहीं नायाब  हैं हम
ताबीर है जिसकी हसरत-ओ-ग़म, ए हमनफसों वोह ख़्वाब हैं हम

ए दर्द, बता कुछ तू ही पता, अब तक यह मुअम्मा हल न हुआ
हममें है दिल-ए-बेताब निहाँ, या आप दिल-ए-बेताब हैं हम

मैं हैरत-ओ-हसरत का मारा, खामोश खड़ा हूँ साहिल पर
दरिया-मोहब्बत कहता है, आ कुछ भी नहीं पायाब हैं हम 

लाखों ही मुसाफिर चलते हैं, मंज़िल पे पोहचते है दो एक
ए अहल-ए-ज़माना क़द्र करो, नायब ना हो क़ामयाब हैं हम 

मूर्घन-ए-क़फ़स को फूलों ने, ए 'शाद' ये कहला भेजा है
आ जाओ जो तुम को आना हो, ऐसे में अभी शादाब हैं हम

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