चाहता हूँ आँसुओं को, रंग खूँ का दे सकूँ
ताकि उनको भय-ए-क़लम में दास्ताँ अपनी लिखूँ
दास्ताँ मेरी लिखें स्याहिओं में दम नहीं
सोक लेवे दर्द दिल को कागजों दम नहीं
जिंदगी का कर्ज लेकर ब्याजमें क्या दूँ तुम्हें
या इलाही कर्ज देकर लुटते है क्यूँ हमें
ताकि उनको भय-ए-क़लम में दास्ताँ अपनी लिखूँ
दास्ताँ मेरी लिखें स्याहिओं में दम नहीं
सोक लेवे दर्द दिल को कागजों दम नहीं
जिंदगी का कर्ज लेकर ब्याजमें क्या दूँ तुम्हें
या इलाही कर्ज देकर लुटते है क्यूँ हमें
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा